बुधवार, 26 अगस्त 2020

अकेले हम काग़ज हैं, मिल जाएँ तो किताब हैं। अकेले हम अल्फाज हैं, मिल जाएँ तो लाज़वाब हैं। अकेले हम ईंट हैं, मिल जाएँ तो इमारत हैं। अकेले हम हाथ हैं, मिल जाएँ तो पूजा-इबादत हैं।

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