शनिवार, 25 जुलाई 2020

मुक्त बनिए, मूच्र्छित नहीं। मूच्र्छा और मुक्ति में इतना-सा-फर्क है कि जिसने कागज को धन समझ लिया वह मूच्र्छित हो गया और जिसने धन को कागज समझ लिया वह मुक्त हो गया।

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